Monday, March 17, 2014

घागर भरली | Marathi Kavita | मराठी लेख | Virah Kavita | विरह कविता

घागर भरली
भान विसरली
झाली साडी ओली
गोपी घाबरली .....-.....

डोईस गगरी
नजर बावरी 
ओचा हाती धरी 
चाले लवकरी .....-.....

उसळले नीर
धडधडे ऊर
लपेटे पदर
सखे ग सावर .....-.....

तोच पावा स्वर
ऐकूनी ती नार
मिटे एकवार
(डोळा )पाहे चितचोर .....-.....

संसार विसरली
भरली घागर .....-.....

  विजया केळकर ___

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